Friday, 7 February 2014

अँधेरी रात में दिये  को अकेला देख
आँधियों का  मन मचलने लगा।

भयाक्रांत दिये को देख
हवाएँ ललचने लगी।

देख कर इस नजारे को
एक जख्मी पतंगा भाग चला। 

पतंगे कि आवाज पर
 सारे परवानो का हुजूम लगा।

पतंगों ने बून ली एक चादर
अकेले कांपते दिये के चारों ओर।

आँधियो का कोई बस न चला
और वे पीछे खसकने लगी।

और जब सुबह हुई तो
दिया सुबक सुबक कर रोया।

दिये के चारों और शहीद पतंगे
दिये की आँख से आंसू  टपकने लगे। 

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