आँखें धंस ही चुकी है तो क्या , देह ही तो सूखा है अब तक
रात हुई है कब ,आँख लगी थी ,कब लक्ष्य बचेगा कब तक।
मेरी हथेली पर आ चूका है चाँद ,सितारे भी कर रहे आराम
दीये सजे ,सजे मंडप ,बजी भेर, रौशनी नाची थी अविराम।
आखिर मेरी मुट्ठी में तो अब आ ही चूका है आसमान,शून्य
अपने सूरज के लिये कोई और जगह तलाश लो अब तुम।
धरती मेरी सांसों में समा गयी है, दुनिया कहाँ रहेगी अब
मेरी आँखों में अब भी रह सकते हो ,सारी जहां रहेगी अब।
आँखें धंस ही चुकी है तो क्या , देह ही तो सूखा है अब तक
रात हुई है कब ,आँख लगी थी ,अब लक्ष्य बचेगा कब तक।
रात हुई है कब ,आँख लगी थी ,कब लक्ष्य बचेगा कब तक।
मेरी हथेली पर आ चूका है चाँद ,सितारे भी कर रहे आराम
दीये सजे ,सजे मंडप ,बजी भेर, रौशनी नाची थी अविराम।
आखिर मेरी मुट्ठी में तो अब आ ही चूका है आसमान,शून्य
अपने सूरज के लिये कोई और जगह तलाश लो अब तुम।
धरती मेरी सांसों में समा गयी है, दुनिया कहाँ रहेगी अब
मेरी आँखों में अब भी रह सकते हो ,सारी जहां रहेगी अब।
आँखें धंस ही चुकी है तो क्या , देह ही तो सूखा है अब तक
रात हुई है कब ,आँख लगी थी ,अब लक्ष्य बचेगा कब तक।
No comments:
Post a Comment