Friday, 7 February 2014

कल्पना कोरी कल्पना नहीं होती
वह उतना ही सत्य है
जितना तुम औ मैं।

मैंने देखा है
कल्पना के दांत , नाख़ून।
कल्पना की जीभ कटार की तरह
दोनों और तेज धार वाली होती है।

कल्पना को मैंने
आंसुओं  से भींगा देखा है।

ओठ काटते
दांत पर दांत चढ़ाये देखा है।

उसे साँस लेते देखा है
उसकी साँस उखड़ते  भी देखा है।

मैं देखता रहता हूँ
मैनें अभी अभी देखा है।

देखोगे तो तुम भी
पर बरसों स-सदियों बाद। .

जो कुछ तुम आज देख रहे हो
वर्षों पहले वे  सब कल्पना ही तो थी।

मैं आज देख रहा हूँ जिसे , तुम भी देख सकोगे
रक्त ,मांस मज्जा चढ़ जाने पर,शायद कल।

गांधी , जिसे मैनें देखा है
वह तुम्हारे लिए केवल कल्पना रहेगा।

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