Tuesday, 4 February 2014

जितनी ऊर्जा हमने इतिहास चिंतन और उसके महिमामंडन पर खर्च की है उसका एकांश भी यदि हमने वर्त्तमान के निर्माण या भविष्य के निर्माण के लिये किया होता तो स्थिति ही और होती।
मेरा विरोध इतिहास  के प्रति अनावश्यक ममता से है। मेरा विरोध चिंतन की दिशा से है। मेरा विरोध भूतलक्षी दृष्टि से है ,मेरा विरोध बेहोशी से है। मेरा विरोध यथास्तिवादियों से है।
जीवन के मोह में कायर बन जाना उचित नहीं।  मेरा विरोध घिसट घिसट कर जीने से है।
मेरा लक्ष्य भविष्य के लिये मृत्यु है। मैं संतोष के साथ जीना नहीं चाहता। मैं भविष्य के लिए मरना चाहता हूँ। भविष्य के लिए कैसे मरा जाये ,यह सीखना चाहता हूँ। मैं मरने की कला का विद्यार्थी हूँ। नहीं जनता हूँ  कि सही ढंग से मर भी पाउँगा या नहीं।
पर मेरी समझ में आदर्श भविष्य के लिये इस जीवन का त्याग ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है।
मैं इतिहास के साथ साथ तो चल सकता हूँ पर इतिहास के आगे या पीछे नहीं। इतिहास को मई अपनी पीठ पर ढोना तो मई कत्तई बर्दास्त नहीं कर सकता।
मैं वर्त्तमान में जिऊंगा , पूरी ताकत से जिऊँगा और केवल भविष्य के लिये मरुंगा।
वैसे मेरी समझ में भूत, भविष्य और वर्त्तमान में कोई बहुत अंतर नहीं है। एक छोटे से अंतराल में इन तीनों को सहज ही समझा जा सकता है।
इतिहास केवल दो चार हजार साल पुराना ही नहीं होता ,दो चार सौ साल पुराना ,दो-चार  साल पुराना भी इतिहास ही होता है।
दो-चार साल पुराना ही क्यों ,दो चार महीने पुराना भी तो हो सकता है ,दो- चार  घंटा,, दो चार मिनट , दो चार पल भी तो है ही न।
इसी प्रकार भविष्य भी दो चार घंटे या दो चार महीने की ही बात नहीं हुआ करता ,दो चार हजार साल के बाद वाला भी भविष्य ही है।
वर्त्तमान के दो हिस्से है ,एक भूत हुआ जा रहा है ,दूसरा भविष्य से आ रहा है। एक भविष्य है , दूसरा भूत हो जायेगा। एक वर्त्तमान था ,एक वर्त्तमान हो जायेगा।
हम स्थिर हो कर बैठ जाये तो अज्ञात भविष्य को वर्त्तमान होते देख पाएंगे। उसे भूत होते भी देख पाएंगे। न भविष्य ज्ञात है न भूत पुनः प्रकाश्य।
भविष्य की कल्पना कीजिये।तर्क शास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर भविष्यवाणियाँ कीजिये ,यदि कोई तुक्का मिल जाये  तो खुश होइए। सम्मानित हो जाइये।  पर भविष्य को जानने का दवा करते करते भी आप मानियेगा कि यह अपूर्ण है। अनिश्चित है ,सत्य से अधिक दूर है। असत्य के अधिक करीब है ऐसा दावा।
इसी प्रकार जो कुछ भूत हो गया उसे देखते रहिये अपनी यादों से ,बस। वह दूबारा तो लौट कर नहीं आएगा। कितना भी आप कह लीजिये ,कि जो गुजर गया वह बहुत याद आ रहा है , वापस तो आने से रहा।
सच तो यह है कि आपने तो अपनी ताकत भर जो गुजर गया उसे केवल जाने ही नहीं दिया वरन आपने उसका जाना सुनिश्चित किया। आपने तो उसका अस्तित्व ही नष्ट कर दिया। उसके होने के प्रमाण तक मिटा डाले। क्या यह सत्य नहीं है कि जो अभी कुछ समय पहले तक सत्य था ,वर्त्तमान था  और अभी -अभी भूत हुआ है उसे आपने अपने ही हाथों से हजारों डिग्री सल्सियस तापक्रम  के बीच राख बना देंगे। क्या फर्क पड़ता है ,यह तापक्रम चन्दन की लकडियो से पैदा हुआ हो या बिजली की भट्टी में।
आपका तो एक ही उद्देश्य था ,जोई वर्त्तमान अभी अभी भूत हुआ है उसका प्रमाण मिटा देना। उसको राख  बना देना।
जो अभी अभी वर्त्तमान था उसे अपने ही हाथों जमीन के अंदर दस फीट अन्दर दफन कर देते है। यों तो जमीन के अन्दर दस फीट की यात्रा में सैंकड़ों , हजारों , करोड़ों  वर्ष लग जा सकते हैं। पर आप अपने ही हाथों आसन्न भूत को पूर्ण भूत ,सम्पूर्ण भूत ,अनंत भूत  बना देना चाहते हैं। अभी -अभी मनों मिटटी लाद कर आये हैं ,और आपखते हैं -बहुत याद आती है।
वैसे आपको उदास होने की आवश्यकता नहीं हैं। वर्त्तमान को भूत होने से कोई नहीं रोक सकता। भूत वर्त्तमान में नहीं लौटा करता।  वर्त्तमान की नियति ही है कि वह भविष्य से आएगा  और भूत हो ही जायेगा।
वर्त्तमान को भूत का अमृत पिला कर ,या कोरामिन पिला कर जीवित रखने का प्रयास कितना सार्थक होगा , पता नहीं।
वह भूतकालजो अपनी रक्षा नहीं कर सका ,हमारे भविष्य की रक्षा क्या करेगा।
वैसे अपनी अक्षमता छिपाने के लिए भूतकाल की छींटदार चद्दर अच्छी है। ओढ़ लीजिये , पर इस जर्जर चद्दर से क्या वर्त्तमान की गर्मी ,वर्षा ,जाड़े  आने बंद हो जायेंगे ?
भूतकाल के गौरव की चद्दर या पन्नी ओढ़ लेने से क्या आपका वर्त्तमान सुरक्षित हो जायेगा ? भूतकाल का स्मरण कर क्या आप भविष्य के विरोध से बच सकते हैं ?  










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