Monday, 24 February 2014

लिखी बात कम पढ़ी जाती है ,सुनी बात को ही पढ़ा मान लिया जाता है।
छोटी रचना,एक दो वाक्यों की ,एक दो शब्दों की ही पढ़ी जाती है।
न बड़ा  सोच , न बड़ा लेखन-न बड़ा लेखक - पाठक तो हैं ही कम -केवल नकलची  ब्यापारी - बस इश्तिहारबाज  फैलें हैं चरों ओर। मंच पर कमर लचका दो लाइन सुनना , सुनाना , कुछ अदा से कुछ कह दिखाना ,हो गया लिखना भी और पढ़ना भी।
लिखने में न तो निरन्तरता, न समरूपता। 

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