Friday, 28 February 2014

अपमान भी कोई याद रखने की चीज है। पान कि पीक की तरह तुरत फैंक दीजिये। रोज बिना बुलाये चले आये धूल गरदे की तरह मिले या चले आये अपमान को कब तब बैठा कर रखेंगें, तुरत डस्टर से झाड़ कर साफ कर दें।
पर अपमान के साथ ही ऐसा व्यवहार क्यों?
आप मान को तो ताजिन्दगी अपने ड्राइंग रूम में  बैठा कर साथ रखते हैं।कभी भूलते नहीं। बड़ै इतमिनान से संभाले रहते हैं।
मान मनपसन्द है,मनमाफिक है,टेस्टी है। अपमान दुःख देवन है, इसीलिये दोनो के साथ दो तरह का व्यवहार करते हैं, यही न।
पर अपमान आभिमान का नाश करता है, कुछ कह जाता है, कुछ समझा जाता है, स्वयं अपने कारणों के बारे में संकेत दे जाता है।
मान सोया हुआ अभिमान जगा देता है, बहुत कुछ भुला डालता है, गफलत मैं उलझा देता है और अपमान के रास्ते ढकेल डालता है।
अपमान के क्षणों को याद करते रहने से नुकसान कम होते हैं, वे बार बार आपको सावधान करते हैं। हाँ ,कभी -कभी उत्साह को कम करते हैं, विषाद से भर डालते हैं पर आत्मनिरीक्षण को बाध्य भी तो करते हैं।
अपमान के कारण शायद हम स्वयं होते हैं। इससे बचने का उपक्रम भी हमें स्वयं ही करना होगा।
अपमान अच्छा एपीटाइजर है ,अपमान मान की भूख जगा देता है।

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