Friday, 28 February 2014

खड़ी चढ़ाइयों पर भी लोग चढ़ते ही ना हैं।
ढलान पर लुढ़कते तो सब हैं ;वहाँ खड़ा रहना मुश्किल तो है ,असम्भव नही। चारों ओर लोग चासनी देखते फिर रहे हैं ,फिसलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं , ठोकर मार मार कर लुढ़काने का प्रयास चल रहा है , लोग देख रहे हैं ,लुढ़कोगे कैसे नहीं ,कब लुढ़कता है ,गिरता है , हिला हिला कर गिरा रहें हैं ; एक तो यह ढलान जो लगभग सभी जगह हैं ,दूसरे ये सवाली बवाली मवाली।

पर मैं गिरूंगा नही ,ढ़लकुँगा नहीं। लुढकुंगा नहीं। स्थिर होके देखूंगा कि तुम मुझे गिराने के लिये कितने गिरते हो। 

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