हर सख्श को अपनी चादर खुद ही बुननी पड़ती है
यदि साफ बेदाग चादर ओढ़नी हे
ओढ़ कर जस की तस रख देनी है ,
तो
हर शख्स को खुद को ही ताना बना ही देना होगा
भरनी भी बाहर से ली तो ,चादर बनने के पहले दगदार
हर चादर वाले को बनना ही होगा, चादर का पहरेदार
जतन से पहनने का जनून-चादर पहनने का,
बेदाग पहनने-बने रहने की कालजयी प्रतिज्ञा
जस की तस रख देने की खुद को दी कसम
कुर्बानी का माद्दा, सहने का जिद्द
बँधी जीभ,खुली तब भी बँद आँखें
न बोले पर सब तोले सो जुबान,
खाते पर चखते नहीं
भोगते औ भागते पर रूकते नहीं
देखकर भी ताकते नहीं
जागते ,जगाते, न सोते, न सोने देते
हाथ जो कभी थकते नहीं, रुकते नहीं
उढना-बैठना, बोलना -चालना सब फकीरी
तब जा कर बड़े जतन से एक चादर बनती हे
तब जाके जतन से ओढ़ी जाती है
तभि बेदाग रह पाती है
औ तभी जस की तस रख दी जाती है
मन तो इस चादर तो मैला ही करना चाहता हे
कभी कोई इसे मन से बचा ले जाता हे
बेदाग जस की तस रख देने के लिये।
यदि साफ बेदाग चादर ओढ़नी हे
ओढ़ कर जस की तस रख देनी है ,
तो
हर शख्स को खुद को ही ताना बना ही देना होगा
भरनी भी बाहर से ली तो ,चादर बनने के पहले दगदार
हर चादर वाले को बनना ही होगा, चादर का पहरेदार
जतन से पहनने का जनून-चादर पहनने का,
बेदाग पहनने-बने रहने की कालजयी प्रतिज्ञा
जस की तस रख देने की खुद को दी कसम
कुर्बानी का माद्दा, सहने का जिद्द
बँधी जीभ,खुली तब भी बँद आँखें
न बोले पर सब तोले सो जुबान,
खाते पर चखते नहीं
भोगते औ भागते पर रूकते नहीं
देखकर भी ताकते नहीं
जागते ,जगाते, न सोते, न सोने देते
हाथ जो कभी थकते नहीं, रुकते नहीं
उढना-बैठना, बोलना -चालना सब फकीरी
तब जा कर बड़े जतन से एक चादर बनती हे
तब जाके जतन से ओढ़ी जाती है
तभि बेदाग रह पाती है
औ तभी जस की तस रख दी जाती है
मन तो इस चादर तो मैला ही करना चाहता हे
कभी कोई इसे मन से बचा ले जाता हे
बेदाग जस की तस रख देने के लिये।
No comments:
Post a Comment