Tuesday, 30 April 2013

सावन, तुम जरा ठहर के आना,
अभी मुझे गर्म हवाओं से मिल तो लेने दो।

दोस्त, तुम जरा ठहर के आना,
अभी मुझे बेशर्म अपनों से मिल तो लेने दो।

बहारें, अभी तुम ठहर के आना,
जरा इस वीरानगी को मुझे जी तो लेने दो।

दीपक, अभी तुम मत जल जाना,
... जरा आँखों को अंधेरे मे रम तो जाने दो।

जिन्दगी,अभी जीने को मत कहना
मौत को इतमिनान से मुझे जी तो लेने दो।

आसमान तू जमीं पे यूँ ही मत आना,
ज़मीन के ज़म़ीर को अभी और जगने दो।

नूर ऐ खुदा, अभी हाजिर ना हो,
खयाल औ मौज को अभी मौज करने दो।

साँस अभी तुम मत चल पड़ना,
मुझै देखने औ रोने उन्हें आ तो जाने दो।

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