Tuesday, 30 April 2013

तुम्हारे हिस्से का चाँद
अब कब उगेगा।
महीनों तलक फैल चली है
निगोड़ी स्याह अमावस।

चलो अब सुबह का ही
ईन्तजार कर लिया जाये,
पर, वह देखो, बंद बक्से में
सूरज को तो उन्होंने बेच डाला है।

... अब बरदास्त से बाहर है,
प्यास से हलक सूख चला
नदी के किनारे पता चला
पानी तो रहा नहीं खून बहता रहा।

ऊदास लौटा तो बुतरू मचल पड़ा
मेरे खिलौने कहाँ छोड़ आये हो तुम
सिर झुकाये मैं कह नहीं सका,
बीती रात खिलौने से किसी ने खेल लिया।

चूल्हा टूटा, घइला फूटा
रोटी कहाँ है, तवा भी रूठा
दीदी गई है भेड़ियों के साथ
खाना लायेगी, भले ही झूठा।

लहू लुहान वह वहाँ पड़ी है
भिड़ तो देखौ, सिर चढ़ी है
आया नेता, आया अफसर
लाया रोटी चाँदी मढ़ी है।

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