सच
तो एक मात्र सच है, उसे किसी पैकिंग की,प्रजेन्टेबेलिटी की, मेमोरी या सेव
,एडिट की की जरूरत नहीं,वह प्रदर्शनी या बाजार या आग्रह का भी मोहताज
नहीं- पर सच सदा संघर्ष रत रहता है- वह न किसी का दोस्त न दुशमन। मानव के
सारे आवेग सच से प्रतियोगिता रखते हैं, इसलिये सच को सदा सक्रिय रहना पड़ता
है।
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