अपना और अपनों का व्यवहारिक मुल्यंकन भी करो,अपनी श्रद्धा को यथावत् रखते हुए, व्यवहारिक मुल्यंकन तथा भावनात्मक मुल्यांकन के अंतर को समझो तो सही, स्वीकार करना या न करना तुम्हारी मरजी, इससे तुम्हे चास्तविकता का कम से कम पता तो चल ही जायेगा, इसी तरह तुम अपना तथा अपनों का अधिक ख्याल रख सकोगे- कुल मिलाकर सभी को साथ लेकर चलने और आगे बढ़नेका यही मूलमंत्र है।
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