केवल जीवंत समाज ही सचेत समाज की अपनी श्रद्धा को, विश्वास को, अपने मूल्य को, बार बार जाँचता और परखता रहता है।
परिस्थितियाँ, समय, काल, सब कुछ परिवर्तित होते रहते हैं, और इसलिये प्रसंग भी बदलते हैं।
और वह समाज जो बदलती हुई परिस्थितियों में अपने पुराने मूल्य, चाहे वे कितने भी महत्वपूर्ण, श्रद्धास्पद, पवित्र या आस्था के विषय क्यों न हों, की जाँच करता है, तो यह उस समाज के जीवंत होने का प्रमाण है। पराने मूल्यों की , पुरानी श्रद्धा की पुनः एक बार जाँच हो जाना बेहतर बविष्य के लिये आवस्यक है। नये संदर्भ में पुरानी स्थापनाओं की व्याख्या होना उचित जान पड़ता है। यदि हम और आप पुराने मुल्य को यथावत् छोड़कर आगे बढ़ जायेंगें तो पुराने मुल्य और नयी परिस्थितियाँ ,एक दूसरे के प्रसंग में निरर्थक हो जायेंगें। आप नये प्रसंग में व्याख्या करें न करें, परिवर्तन तो रोक सकते नहीं। पल भर भी परिचर्तन नहीं रूक सकता। सदियों और सहस्त्राब्दियों में तो बहुत बड़ा अन्तर हो जाता है
जब एक पीढ़ी के कुछ लोग ही सही, के माध्यम से पुराने मुल्य, पुरानी श्रद्धा, बहुत पुराने विश्वास, यहाँ तक की अस्तित्व की नींव बन चुके मौलिक प्रतीत हो रहे मूल्यों का मूलयांकन करती है, प्रासंगिकता ती जाँच करती है तो सच मानिये, वह पीढी, वह क्षण धन्य हो जाता है, और आने वाली पीढियाँ ऐसे पुनर्मूल्यांकन के साक्षी बने विद्वतजनों को प्णाम करेगी कि आपने समय से पूर्व पुरानी स्थापनाओं को पुनः पुनःजाँच परख लिया था, नवीकरण कर दिया था।
राम से भी बड़ा है राम का नाम- और राम के यश से बड़ा है रामकथा का यश ।
इसी प्रकार कृष्ण से बड़ा है कृष्ण का कर्म, कृष्ण -यश से भी बड़ा है कृष्ण- कर्तृत्व-कृत्य- मर्म-यश।
कृष्ण हमारी आदि संस्कृति के आधार हैं, स्तम्भ हैं, ध्वजा है, हृदयस्थली हैं। उन पर अनन्त चर्चायें हो सकती है।
वर्तमान संदर्भ में ,प्रासंगिकता की दृष्टि से,कृष्ण-कृत्य-दर्शन के कई आयाम हैं-
राजनैतिक आयाम
राजनयिक आयाम
रणनीतिकार आयाम
आर्थिक विशेषज्ञ आयाम
सामाजिक नेतृत्व विषयक आयाम
पर्यावरणविद् के रूप में आयाम
आपदा प्रबन्धन विशेषज्ञ के रूप में आयाम
सहज संगठनकर्ता के रूप में आयाम
सलाहकार के रूप में आयाम
दार्शनिक आयाम
प्रशिक्षक के रूप में आयाम
विधिज्ञ आयाम
नितिज्ञ आयाम
सहभागी मित्र के रूप में आयाम
अन्य प्रचलित आयाम
मध्यस्थ के रूप में आयाम
परिस्थितियाँ, समय, काल, सब कुछ परिवर्तित होते रहते हैं, और इसलिये प्रसंग भी बदलते हैं।
और वह समाज जो बदलती हुई परिस्थितियों में अपने पुराने मूल्य, चाहे वे कितने भी महत्वपूर्ण, श्रद्धास्पद, पवित्र या आस्था के विषय क्यों न हों, की जाँच करता है, तो यह उस समाज के जीवंत होने का प्रमाण है। पराने मूल्यों की , पुरानी श्रद्धा की पुनः एक बार जाँच हो जाना बेहतर बविष्य के लिये आवस्यक है। नये संदर्भ में पुरानी स्थापनाओं की व्याख्या होना उचित जान पड़ता है। यदि हम और आप पुराने मुल्य को यथावत् छोड़कर आगे बढ़ जायेंगें तो पुराने मुल्य और नयी परिस्थितियाँ ,एक दूसरे के प्रसंग में निरर्थक हो जायेंगें। आप नये प्रसंग में व्याख्या करें न करें, परिवर्तन तो रोक सकते नहीं। पल भर भी परिचर्तन नहीं रूक सकता। सदियों और सहस्त्राब्दियों में तो बहुत बड़ा अन्तर हो जाता है
जब एक पीढ़ी के कुछ लोग ही सही, के माध्यम से पुराने मुल्य, पुरानी श्रद्धा, बहुत पुराने विश्वास, यहाँ तक की अस्तित्व की नींव बन चुके मौलिक प्रतीत हो रहे मूल्यों का मूलयांकन करती है, प्रासंगिकता ती जाँच करती है तो सच मानिये, वह पीढी, वह क्षण धन्य हो जाता है, और आने वाली पीढियाँ ऐसे पुनर्मूल्यांकन के साक्षी बने विद्वतजनों को प्णाम करेगी कि आपने समय से पूर्व पुरानी स्थापनाओं को पुनः पुनःजाँच परख लिया था, नवीकरण कर दिया था।
राम से भी बड़ा है राम का नाम- और राम के यश से बड़ा है रामकथा का यश ।
इसी प्रकार कृष्ण से बड़ा है कृष्ण का कर्म, कृष्ण -यश से भी बड़ा है कृष्ण- कर्तृत्व-कृत्य- मर्म-यश।
कृष्ण हमारी आदि संस्कृति के आधार हैं, स्तम्भ हैं, ध्वजा है, हृदयस्थली हैं। उन पर अनन्त चर्चायें हो सकती है।
वर्तमान संदर्भ में ,प्रासंगिकता की दृष्टि से,कृष्ण-कृत्य-दर्शन के कई आयाम हैं-
राजनैतिक आयाम
राजनयिक आयाम
रणनीतिकार आयाम
आर्थिक विशेषज्ञ आयाम
सामाजिक नेतृत्व विषयक आयाम
पर्यावरणविद् के रूप में आयाम
आपदा प्रबन्धन विशेषज्ञ के रूप में आयाम
सहज संगठनकर्ता के रूप में आयाम
सलाहकार के रूप में आयाम
दार्शनिक आयाम
प्रशिक्षक के रूप में आयाम
विधिज्ञ आयाम
नितिज्ञ आयाम
सहभागी मित्र के रूप में आयाम
अन्य प्रचलित आयाम
मध्यस्थ के रूप में आयाम
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