सफलता
के लिये जुनून,उन्माद का होना बहुत जरूरी है, प्रयास के लिये तैयार होने
के पहले से और सफलता अन्तिम रुप से स्थिर आकार ले लेवे, तब तलक उस प्रवाह
का बना रहना भी जरूरी है।
पर असली परीक्षा तो सफलता के बाद शुरू होती है।
सफलता के वंशज है,अहंकार, और सफलता हर समय विनम्रता से झगड़ती मिलती है।
सफलता के बाद प्रमाद तो रोकना और विनम्र बने रहना -कैसे यह संभव हो।
सफलता के बाद स्वयं को युग की हूँकार समझ ले...ना, बिजली की चमकार जान लेना- ऐसी गलतियाँ
अकसर हो ही जाती है- फिर सफलता के साथ चापलूसों की फौज भी चली आती है। यहीं आपकी सफलता में जिनका भी योगदान होता है ,उनकी अपेक्षाएँ होती हैं, और ये अपेक्षाएँ कोइ नाप तौल कर तो होती नहीं, कोइ खुल कर बताता भी तो नहीं। आपने इमानदारी से अपेक्षानुरूप प्रतिदान दिया पर उनकी उम्मीदों से कम रह जाये तो उपेक्षा की शिकायत।
सफलता के बाद सावधानी बढ़ा देनी चाहिये।
पर असली परीक्षा तो सफलता के बाद शुरू होती है।
सफलता के वंशज है,अहंकार, और सफलता हर समय विनम्रता से झगड़ती मिलती है।
सफलता के बाद प्रमाद तो रोकना और विनम्र बने रहना -कैसे यह संभव हो।
सफलता के बाद स्वयं को युग की हूँकार समझ ले...ना, बिजली की चमकार जान लेना- ऐसी गलतियाँ
अकसर हो ही जाती है- फिर सफलता के साथ चापलूसों की फौज भी चली आती है। यहीं आपकी सफलता में जिनका भी योगदान होता है ,उनकी अपेक्षाएँ होती हैं, और ये अपेक्षाएँ कोइ नाप तौल कर तो होती नहीं, कोइ खुल कर बताता भी तो नहीं। आपने इमानदारी से अपेक्षानुरूप प्रतिदान दिया पर उनकी उम्मीदों से कम रह जाये तो उपेक्षा की शिकायत।
सफलता के बाद सावधानी बढ़ा देनी चाहिये।
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