Wednesday, 1 May 2013

तुम मेरे कुछ लगते क्यों नही
तुम मुझसे लगते क्यों नही
तुम मेरे क्यों लगने लगे हो
मैं तुमसे क्यों लगा जा रहा हूँ।

तुम मुझे जानते क्यों नहीं
तुम मुझे मानते क्यों नहीं
मैं अनजान, तुम्हें बिना जाने ही
इस तरह क्यों मानने लगा हूँ।

... बात बहुत दूर तलक जायेगी,
बिना लगे यूँ लगना या लग जाना
अंज़ाम तो कूछ आवेगा ही
अनजाने, बिना जाने यूँ मान जाना।

अनजाने रास्तों पर यूँ बेधड़क
इतनी दूर चला आया हूँ
एक रौशनी, झलक या एहसास
बिना किये इतमिनान, बस चला आया हूँ।

तूम हो कि जागते नहीं
भगाने पर भी भागते नहीं
मैं क्यों दिन रात जगने लगा हूँ
यह कौन, जिसके लिये भागने लगा हूँ।

जग कर लगने से
लग कर जानने से
जान कर पीछे भागने से
क्या तुम सचमुच मिल ही जाओगे।

तुम न भी मिले तो क्या
मैं लगना छोड़ दूँगा
मानना छोड़ दूङगा
जानना छोड़ दूँगा।

तुम हो या नहीं
यह सवाल कैसे आया
मेरे नहीं जगने का
भाग जाने का, सवाल केसे आया।

तुम हो,
तभी तो मैं हूँ
तुम रहोगे
मै रहुँ न रहुँ।

मेरा ईमान हो तुम
मेरा विश्वास हो
एहसास हो तुम
मैं ही तो हो तुम।

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