ठहर मछेरे, अभी समेट न जाल
मुझे भी फँसने का जी आया है।
सात समंदर भी घूम तो आया मैं
मुझसे मिलने तो अभी आया है।
इरादे तुम्हारे,उनकी तुम जानो
मेरा जी, अब निभाने आया है।
मुझे भी फँसने का जी आया है।
सात समंदर भी घूम तो आया मैं
मुझसे मिलने तो अभी आया है।
इरादे तुम्हारे,उनकी तुम जानो
मेरा जी, अब निभाने आया है।
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