Tuesday, 9 April 2013

सार्थक जीवन यात्रा

लगातार और केवल रूमानियत,केवल बहार, हर समय बसंत,सावन- हो ही नहीं सकता, लैला -मज़नू के किस्से कोइ भी पीढ़ी ता जिन्दगी पढ़ती नहीं रह सकती, केवल सुन्दर आख्यान, मधुर काव्य, नख-शिख-वर्णन, शेर-शायरी किसी भी भाषा को मज़बूत नहीं बना सकते- आइये, पतझड़,हार, निराशा,इतिहास, भूगोल, विग्यान,रौद्र-रस, विभत्स रस, भयानक रस, दुरुह राहों का सम्मन करना सीखें- शान्त रस को आत्मसात् करें, वात्सल्य रस, श्रृंगार रस, वीर रस तो रहेंगे ही- सभी रसों का समानुपातिक समन्वय ही सार्थक जीवन यात्रा हो सकती है

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