Friday, 2 August 2013

तुम्हारे छप्पन भोग का प्रसाद तुम्हें ही मुबारक,मेरे लिये तो मेरा सत्तू, चुड़ा, गुड़, मुढ़ी, पखाल भात, बाजरे की सूखी रोटी ही भली, इज्जत और इतमिनान से खा -खिला लेता-देता हूँ।
मेरा ट्यूब वेल, चापाकल ही मेरी त्रिवेनी-संगम का जल है, रोज मेरी और आये-गये की प्यास बुझाता रहता है।
इज्जत और इतमिनान की रोटी भली, जिल्लत और हिकारत के तख्त-ताउस से।
इज्जत और इतमिनान से जीऊँ, शान से मरूँ- बस इतना ही भला।

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