Saturday, 17 August 2013

अलसाई पसरी पड़ी थी जिन्दगी
अभी मरी नहीं थी जिन्दगी
विमोह मुक्त मुक्ति के मार्ग में
मुरझाई पड़ी थी जिन्दगी।


अधखुली आँखों से झाँकती
अनिंद्रा की शिकार जिन्दगी
झील सी गहरी आँखों मे
सपनों का शिकार करती जिन्दगी।

तड़पते हुए जिवनकामी सपने
इन्हीं के बीच उलझी जिन्दगी
शिकार किये सपनों में है जिन्दगी
उलझी जिन्दगी को सुलझाती जिन्दगी।

अलसाई जिन्दगी,पसरी जिन्दगि
सपनों की बाहों में स्खलित जिन्दगी
कल तलक जो मुरझाई जिन्दगी
अब उम्मीद से हे नई जिन्दगी।







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