इतना मुझे तोड़ते रहते हो, सच
फिर भी मैं टूट क्यों नहीं जाता।
गलाते रहते मुझे ग्लानि मै , क्यों
फिर भी मैं गल क्यों नहीं जाता ।
अपमान -ज्वाला, जलाती है, क्यों
फिर भी मैं जल क्यों नहीं जाता।
तोड़ने से टूटूँगा नहीं,यही सच है
गलाने से गलूँगा नहीं, यही सच है
जलाने से जलूँगा नहीं,यही सच है।
मैं खुद से हूँ, खुदी मेरा वज़ूद है
मेरी गवाही मै हूँ, बस मेरा खुद है।
फिर भी मैं टूट क्यों नहीं जाता।
गलाते रहते मुझे ग्लानि मै , क्यों
फिर भी मैं गल क्यों नहीं जाता ।
अपमान -ज्वाला, जलाती है, क्यों
फिर भी मैं जल क्यों नहीं जाता।
तोड़ने से टूटूँगा नहीं,यही सच है
गलाने से गलूँगा नहीं, यही सच है
जलाने से जलूँगा नहीं,यही सच है।
मैं खुद से हूँ, खुदी मेरा वज़ूद है
मेरी गवाही मै हूँ, बस मेरा खुद है।
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