छियासठ साल की बुढ़िया हो चली है ईमानदारी,
किसी तरह बचते बचाते, आज भी जिन्दा तो है ही।
कितनी बार नंगी की गई, सरे राह चौराहों पर,
बोलियाँ लगी, बिकी भी खूब ,बाजार सजे चारौ ओर
दम घुटा, शर्म आई, मरना चाहा, तब भी जिन्दा तो है.
बूढ़े इमानदार बाप की खाली तिजोरी, चीखता घर
बेरोजगार जवान बेटा, कुवारी बेटी, सब डाँटते
काटने दौड़ता घर तब भी इसी घर में ईमानदारी है।
टैक्ट के नाम पर कितना सताया है हमने आपने
ट्रैफिक पुलिस को बेखौफ खरीदते रहें है हम
नही बिके तो अपनी और भी औकात दिखा जाते हम.
ट्रेन में बेशरमी से अपने बटुए से टीटीई को तौलते हम
सत्ता के गलियारों में, कोर्ट कचहरी मे, चान्स टटोलते हम
मिल गई जो इमानदारी, तो उसे ललचाते हम.
बहकी तो ठीक, न तो उसे लुटवाते हम
रोज बुढ़िया इमानदारी से बलात्कार करते हम
फिर भी इमानदारी आज तक न मरी न मरेगी.
इमानदारी अपने तमाम सितमों के बाद भी जिन्दा है।
बस उसे देखने की चाहत रखना, न भी रखोगे तो भी वह है
छियासठ साल की बुढ़िया हो चली है ईमानदारी.
किसी तरह बचते बचाते, आज भी जिन्दा तो है ही।
कितनी बार नंगी की गई, सरे राह चौराहों पर,
बोलियाँ लगी, बिकी भी खूब ,बाजार सजे चारौ ओर
दम घुटा, शर्म आई, मरना चाहा, तब भी जिन्दा तो है.
बूढ़े इमानदार बाप की खाली तिजोरी, चीखता घर
बेरोजगार जवान बेटा, कुवारी बेटी, सब डाँटते
काटने दौड़ता घर तब भी इसी घर में ईमानदारी है।
टैक्ट के नाम पर कितना सताया है हमने आपने
ट्रैफिक पुलिस को बेखौफ खरीदते रहें है हम
नही बिके तो अपनी और भी औकात दिखा जाते हम.
ट्रेन में बेशरमी से अपने बटुए से टीटीई को तौलते हम
सत्ता के गलियारों में, कोर्ट कचहरी मे, चान्स टटोलते हम
मिल गई जो इमानदारी, तो उसे ललचाते हम.
बहकी तो ठीक, न तो उसे लुटवाते हम
रोज बुढ़िया इमानदारी से बलात्कार करते हम
फिर भी इमानदारी आज तक न मरी न मरेगी.
इमानदारी अपने तमाम सितमों के बाद भी जिन्दा है।
बस उसे देखने की चाहत रखना, न भी रखोगे तो भी वह है
छियासठ साल की बुढ़िया हो चली है ईमानदारी.
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