Monday, 26 August 2013

घड़ी,पेन, मोबाइल, गाड़ी, घर अब प्रयोजन की नहीं शोभा की वस्तु बन गये हैं, आपकी स्टेटस की घोषणा बन गये हैं। आप पहचाने ही जाते हैं- इन्हीं सब से। नहीं जानता ,ऐसा क्यों हो गया।
गाड़ी खरीदी ही जा रही है अपनी हैसियत की घोषणा करने के लिये- चलने के लिये नहीं।  गाड़ी चढ़ने की चीज कम रह गई है- फिर कहाँ जाना है,  उसी हिसाब से गाड़ी बाहर निकाली  जाती है, किसको लाना है या किसको ले जाना हे यह सब हिसाब किताब करने के बाद ही गाड़ी तय की जाती है।
समय ही ऐसा ही रह गया है।

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