गाँवों को बसने बसाने में कई जिन्दगी लग गई,
पगडन्डी को रास्ता बनने में इत्ता वक्त लग गया।
शहर बसते गये, गावों के नये कब्रगाह बन गये ,
मौसमी सपने भाग गये, उदास चरागाह बन गये।
उम्मीदों की बेल पर, नये पत्ते आये अरसा हुआ
नींद अब जगने लगी,लोरी सुनाते अरसा हुआ।
हँसी कब गायब हुई, खोजता फिरता हूँ दिन भर
मुस्कराहटें बिकती रही, खरीदा गया दिल भर।
आँचल पकड़नेवाला बचपन , पूछो तो कहाँ है
खुदगर्ज बड़प्पन, बेशर्म खड़ा,देखौ तो यहाँ है।
पगडन्डी को रास्ता बनने में इत्ता वक्त लग गया।
शहर बसते गये, गावों के नये कब्रगाह बन गये ,
मौसमी सपने भाग गये, उदास चरागाह बन गये।
उम्मीदों की बेल पर, नये पत्ते आये अरसा हुआ
नींद अब जगने लगी,लोरी सुनाते अरसा हुआ।
हँसी कब गायब हुई, खोजता फिरता हूँ दिन भर
मुस्कराहटें बिकती रही, खरीदा गया दिल भर।
आँचल पकड़नेवाला बचपन , पूछो तो कहाँ है
खुदगर्ज बड़प्पन, बेशर्म खड़ा,देखौ तो यहाँ है।
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