Friday, 16 August 2013

उपन्यास सा जीवन अब नहीं रह गया
मुक्त छन्द,नयी कविता,बन कर रह गया है।
प्रस्तावना खोजता रहा हूँ, खो गई है कहीं
उपसंहार तक की यात्रा ,मैं कहीं नहीं मिला।

छन्दों के बन्धन से, मुक्त कर दो कविता को
पक्षी को तो गाने दो, साँस लेने दो सविता को।

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