Friday, 16 August 2013

रूकता क्यों नहीं सपनों का हर दिन आना
आ गये सपनों का इस तरह उड़ सा जाना
अखरता क्यों नही फूलों का झड़ सा जाना
अखरता तो है,अपनों से यूँ लड़ सा जाना।

अपने आते नहीं, आते तो ठहरते नहीं, क्यूँ
काले बादल,गहराते तो है ,बरसते नहीं, क्यूँ
ऊँचाईयाँ झुक झुक जाती है, अड़ी नहीं ,क्यूँ
मंजिलें चलती ही आती है, खड़ी नहीं , क्यौं।



 

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