कुछ एक नायक चाहिये थे जमाने को
कुछ मकबरे तामीर किये जाने थे आने वाली सुबहौं के लिये
नुमाईस के लिये कुछ तो चाहिये था
कुछ चाहिये था दिल बहलाने को
जलाने के लिये भी कुछ का होना लाजमी था
हमें क्या, चाहे हो दिल, या गाँव,शहर, या कि इँसान
तिजारत के लिये भी तो कुछ चाहिये
कुछ बुत, कुछ किताब कुच हिसाब चाहिये
सुलतान के बिना सल्तनत ,वह भी चाहिये
बादशाह के बिना बादशाहतवह भी चाहिये
और इन सब के लिये चाहिये बेबस जिन्दगी
इन्हें बेबस गुलाम रखने के लिये कुछ कायदे चाहिये
आओ किसी, गौड, भगवान, मजहब, धर्म गढ़ें अब
रियाया की बेबसी को पोख्ता बनाये रखने को
जिल्लत, जलालत ,नफरत औ खुदगर्जी
इन सब की फसल उगाने के लिये
सिर कटा नायक, कुछ बेतरतीब इमारतें
बरबादी के लिचे चाहिये कुछ बकवादी
बस अब नुमायश सजाओ, तिजारत शूरू
कुछ भी लाओ जो बुत सा दिखे या एक किताब सी
सुलता औ बादशाह अपने आप बन जायेंगें
जैसे ही इन्सान गुलाम बनते जायेंगें
इन नायकों के , या इन किताबों के,
या किसी इमारत के या मजहब, धर्म के।
कुछ मकबरे तामीर किये जाने थे आने वाली सुबहौं के लिये
नुमाईस के लिये कुछ तो चाहिये था
कुछ चाहिये था दिल बहलाने को
जलाने के लिये भी कुछ का होना लाजमी था
हमें क्या, चाहे हो दिल, या गाँव,शहर, या कि इँसान
तिजारत के लिये भी तो कुछ चाहिये
कुछ बुत, कुछ किताब कुच हिसाब चाहिये
सुलतान के बिना सल्तनत ,वह भी चाहिये
बादशाह के बिना बादशाहतवह भी चाहिये
और इन सब के लिये चाहिये बेबस जिन्दगी
इन्हें बेबस गुलाम रखने के लिये कुछ कायदे चाहिये
आओ किसी, गौड, भगवान, मजहब, धर्म गढ़ें अब
रियाया की बेबसी को पोख्ता बनाये रखने को
जिल्लत, जलालत ,नफरत औ खुदगर्जी
इन सब की फसल उगाने के लिये
सिर कटा नायक, कुछ बेतरतीब इमारतें
बरबादी के लिचे चाहिये कुछ बकवादी
बस अब नुमायश सजाओ, तिजारत शूरू
कुछ भी लाओ जो बुत सा दिखे या एक किताब सी
सुलता औ बादशाह अपने आप बन जायेंगें
जैसे ही इन्सान गुलाम बनते जायेंगें
इन नायकों के , या इन किताबों के,
या किसी इमारत के या मजहब, धर्म के।
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