आज
गुल्लक में कुछ रेजकी एक एक कर डालते जब मैंने अपने आप को पाया तो समझ में
आया की अपने बचपन को जिन्दा रख पाना कितना मुस्किल है- हर रोज मुझसे कोइ
मेरा बचपन छिन लेना चाहता है, समझाता है- बड़े हो गये हो ,अब तो दुनियादारी
समझो ।
मुझे मेरे बचपन की सहजता, सरलता के साथ जी लेने दो।
बड़प्पन के साथ जो विकार चले आते हैं उनसे घृणा के साथ ही मर लेने दो।
सहज होना और बना रहना तुम्हारे विकृत बड़प्पन से अधिक महत्वपूर्ण है। बचपन निष्पाप तो रहता है न।
मुझे मेरे बचपन की सहजता, सरलता के साथ जी लेने दो।
बड़प्पन के साथ जो विकार चले आते हैं उनसे घृणा के साथ ही मर लेने दो।
सहज होना और बना रहना तुम्हारे विकृत बड़प्पन से अधिक महत्वपूर्ण है। बचपन निष्पाप तो रहता है न।
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