Friday, 2 August 2013

आज गुल्लक में कुछ रेजकी एक एक कर डालते जब मैंने अपने आप को पाया तो समझ में आया की अपने बचपन को जिन्दा रख पाना कितना मुस्किल है- हर रोज मुझसे कोइ मेरा बचपन छिन लेना चाहता है, समझाता है- बड़े हो गये हो ,अब तो दुनियादारी समझो ।
मुझे मेरे बचपन की सहजता, सरलता के साथ जी लेने दो।
बड़प्पन के साथ जो विकार चले आते हैं उनसे घृणा के साथ ही मर लेने दो।
सहज होना और बना रहना तुम्हारे विकृत बड़प्पन से अधिक महत्वपूर्ण है। बचपन निष्पाप तो रहता है न।

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