Thursday, 8 August 2013

बेगार सचमुच भली चीज है। पर वह भी सभी को सब समय नहीं मिलती।
बेगार भी एक अवसर है।अपने आप को माँजने का, तराशने का, सिद्ध करने का।
बेगार से झिझक मिटती है, अनुभव तो मिलता ही है। पर बेगार भी मिले तब न ।
कोई साथ में बैठने तक तो नहीं देता।झिड़क देता है, दुदुरा देता है, जब देखो आँख दिखाता रहता है।
बेगार भी करे तो किसकी।
फिर अपना मन ही कम पापी तो नहीं।बेगार करते वक्त भी डरता है। कहीं कुछ नुकसान हो ही गया तो, बिना किसी कारण परेशानी में पड़ जायेंगें।
बेगार भी तरीके से करने वाले को ही मिलती है।
कभी कभी बेगार ही बाद मे इनामी-जागीर बन जाती है।
बेगार भी इतमिनान से ही की जानी चाहिये। बेगार में बेगारी करने से बेकार हो जाता है।
बेगार में मौज़ आ जाये तो फीर मौज ही मौज है।

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