क्यों हमें हमसे बहुत आगे चलने वाले , करने वाले ,सोचने वाले ,देखने वाले सुहाते ही नहीं .
वैसे दुनिया आज तक किसी की मुट्ठी में न तो समाई न कभी समायेगी .
यह एक अनन्त की अविरल यात्रा है ,जिसमे बहुत - बहुत चलना ,करना ,देखना, सोचना और अंत में सबके सामने करना ही पड़ता है .
सब के सामने सब कुछ केवल आगे ही बढ़ता ही चला जाता है .रोके भी न तो रुका है , न रूकेगा . हमारे पहले भी लोगों ने समय से बहुत आगे चला , किया , सोचा , देखा तभी तो आज हम सब यूँ हैं
वैसे दुनिया आज तक किसी की मुट्ठी में न तो समाई न कभी समायेगी .
यह एक अनन्त की अविरल यात्रा है ,जिसमे बहुत - बहुत चलना ,करना ,देखना, सोचना और अंत में सबके सामने करना ही पड़ता है .
सब के सामने सब कुछ केवल आगे ही बढ़ता ही चला जाता है .रोके भी न तो रुका है , न रूकेगा . हमारे पहले भी लोगों ने समय से बहुत आगे चला , किया , सोचा , देखा तभी तो आज हम सब यूँ हैं
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