Wednesday, 21 January 2015

उच्च शिक्षा प्राप्त ,प्रशिक्षित योग्य पुत्रादि के माता-पिता को भी अपनी सन्तान पर भरोसा करना सीखना ही पड़ेगा - नई उम्र में जब बच्चे योग्य हो जाने पर माता पिता को सलाह-मशविरा देते हैं तो वह माता पिता को अपने अधिकारों में हस्तक्षेप जैसा लगता है ,माता-पिता अपनी ही सन्तान को बच्चा ही समझते हैं ,उस पर या उसकी सलाह पर भरोसा नहीं कर पाते और बच्चा अपनी योग्यता की उपेक्षा ,प्रशिक्षण पर संशय से भ्रम में पड़ जाता है .
योग्यता का सम्मान तो माता-पिता को ही करना होगा .नई योग्य पढ़ी-लिखी प्रशिक्षित पीढ़ी पर भरोसा तो किया ही जाना चाहिये .
पहले वाली अशिक्षित पीढ़ी के नजरिये से नई दुनिया को देखना- उसका मुल्यांकन करना ,नई पीढ़ी को वह दायित्व नहीं सौंपना  जिसके लिये वह तैयार हो चूका है और जिम्मेवारी लेने को भी तैयार है , अपने बसंत,बहार को भी रोकने को तैयार है , पर एक हम हैं जो नई पीढ़ी को संशय की निगाह से देखते देखते नई पीढ़ी की सारी योग्यता को ही समय से पहले सुस्त हो जाने देते हैं.
यह योग्य मानवीय संसाधन का दुरूपयोग है ,अपब्यय है
हमे इससे बचना ही पड़ेगा।

 पीढ़ी मेरे से अधिक साधन मुखी है। अधिक जिज्ञासु है। उसकी पहुँच अधिक धार दार है। वह अधिक विश्लेषणात्मक है।  अधिक कठोरजीवी है। मेरे से अधिक तर्कशील ,मेधावी और कल्पना-स्वप्न -योजना युक्त है। 
उसने इतिहास से सीखा -समझा है क्यों की इतिहास को आपने ही उसे बताया है , उसके पास इतिहास तक पहुँच है , समझ है , दृष्टि है। चारो और घटित हो हो रहे घटना क्रम पर उसकी नजर है।  अब  अब तो आप भी उसे उपलब्ध हो। 

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