Thursday, 29 January 2015

जीवन प्रतीक्षा ,परीक्षा , अपेक्षा ,उपेक्षा  को परिश्रम  एवं विवेक के साथ बनाये  गये समुच्चय का नाम है .  भ्रम और व्यतिक्रम  की सम्भावना सदा ही बनी रहती है .
.यह कैसा बना है , अमूमन पता ही नहीं चलता क्योंकि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व काल में जीवन शायद निर्माण की ही प्रक्रिया में रहता है .
अंतिम रूप से बना कहलाना बहुत ही कठिन है , कहीं भी ,कभी भी बना बनाया टूट -फूट जा सकता है .
जीवन की बैलेंस-सीट शायद उसके न रहने पर दूसरे ही बनाया करते है .
हाँ आभाषी ,ड्राफ्ट ,नोट फाइनल असेसमेंट  किये जा सकते हैं अपने संतोष के लिये .

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