लगभग ३५ वर्ष से अधिक हुए ,एक अखिल भारतीय बहुमुखी स्वनाम धन्य हस्ती के सानिध्य में बैठा था ,वे कह रहे थे कि मेरी बातों को सुनने में इतने लोग क्यों अपना समय ब्यतीत करते हैं, या मेरा कहा लिख क्यों लिया जाता है , या मेरा लिखा इतना लोग क्या वास्तव में खरीदते है या पढ़ते है .
वे सदा आश्चर्य का भाव प्रदर्शित करते थे . मुझे वे बनावटी लगते थे .
वैसे मैं ही नहीं बहुत से लोग और आज भी आप में से अधिकांश उन महामना के आत्यंतिक भक्त होंगे .
आज उनके विस्मय - बोध का मर्म कुछ कुछ समझ में आने लगा है
वे सदा आश्चर्य का भाव प्रदर्शित करते थे . मुझे वे बनावटी लगते थे .
वैसे मैं ही नहीं बहुत से लोग और आज भी आप में से अधिकांश उन महामना के आत्यंतिक भक्त होंगे .
आज उनके विस्मय - बोध का मर्म कुछ कुछ समझ में आने लगा है
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