Tuesday, 13 January 2015

श्रद्धा का दान लेने लायक बनों , श्रद्धा प्राप्ति के लिये उद्यम करो , श्रद्धा अर्जित करो ; यही एक मात्र है मांगी नहीं मिलती , और प्राप्त श्रद्धा का त्याग आपके बस में नहीं .बस श्रद्धा के लिये समुचित आचरण भर ही आप कर सकते हो , श्रद्दा का मिलना या न मिलना आपके अधिकार में नहीं है - देने वाले का विचार है -उसकी उदारता है , उसी का अधितर है ,उसी का दायित्व भी .
श्रद्धा परम  भाव है , परमोत्तम  भावना है ,यह एक बलिदान है ,सर्वोत्तम कमाई है , सबसे कीमती तोहफा है , 
जिसने दिया वह भी निहाल , जिसे मिली वह भी निहाल .
दोनों ही बंध भी गये ,दोनों ही सम्भल भी गये , दोनों ही आजाद हुए .
दोनों का भार स्वतंत्र भी और एक दुसरे पर भी .

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