कांच के घर न बनाये जाएँ , न उनमें रहा जाये. कांच के घरों के होने पर ही लोग पत्थर फेंकने का डर दिखाते है . कांच में घरों में रहने वाले अंदर से डरे होते हैं . वे कांच को अपारदर्शी बनाने या बनवाने में भी लगे रहते है .कभी पर्दे लगवाते है .कभी पत्थरों से डरते हैं . उन्हें अपना ही डर लगता रहता है .
कांच के घर बनवाना क्या इतना जरूरी है .
बेहतर है , खिड़की , दरवाजा , रोशन दान ,छत ,रसोई ,शौचालय ,पूजा-घर ड्योढ़ी ,आंगन बगीचा ,बाड़ी वाला एक सामान्य घर हो जिसमे आवश्यकतानुसार सभी सुरक्षित आ-जा-ठहर सकें ,हंसा ,रोया ,नहाया -धोया ,सोया, खाया-पीया जा सके ,उठाया,बैठाया जा सके. पूजा पाठ, आमोद-प्रमोद स्भिमंविय सामान्य आवश्य्क्तानुसर्किया जा सके जहाँ शांति से कुछ लिखा-पढ़ा भी जा सके . . कभी सामान्यतः कोई डर भय नहीं हो ,कम से कम आत्मिक ,कायिक -मानसिक सुरक्षा-शान्ति का आभास तो रहे. कभी कोई भय हर वक्त सताये ही , यह उचित नहीं.
कांच के घर बनवाना क्या इतना जरूरी है .
बेहतर है , खिड़की , दरवाजा , रोशन दान ,छत ,रसोई ,शौचालय ,पूजा-घर ड्योढ़ी ,आंगन बगीचा ,बाड़ी वाला एक सामान्य घर हो जिसमे आवश्यकतानुसार सभी सुरक्षित आ-जा-ठहर सकें ,हंसा ,रोया ,नहाया -धोया ,सोया, खाया-पीया जा सके ,उठाया,बैठाया जा सके. पूजा पाठ, आमोद-प्रमोद स्भिमंविय सामान्य आवश्य्क्तानुसर्किया जा सके जहाँ शांति से कुछ लिखा-पढ़ा भी जा सके . . कभी सामान्यतः कोई डर भय नहीं हो ,कम से कम आत्मिक ,कायिक -मानसिक सुरक्षा-शान्ति का आभास तो रहे. कभी कोई भय हर वक्त सताये ही , यह उचित नहीं.
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