समाज अच्छा होने की ,अच्छा रहने की , अच्छा ही मर जाने की बहुत बड़ी कीमत मांगता है .
अच्छाई और यह कीमत एक साथ चलती है .
जो अच्छे तो होना ,रहना ,या मरना चाहते हैं पर समाज को उसकी कीमत अदा नहीं करना चाहते , या नहीं कर पाते उन्हें समाज अच्छा न तो कहता है , न सहता है - समाज उनके साथ नहीं रहता.
है तो विडम्बना ,पर है कुछ ऐसा ही .
मानिये ,समझिये तो भी ठीक - न मानिए ,न समझिये तो भी; है तो यही .
वैसे समझ में नहीं आया आज तक - अच्छाई के साथ समाज का ऐसा ब्यवहार क्यों ?
शायद समाज का यही रिवाज है , परखने का ,पहचानने का !
अच्छाई और यह कीमत एक साथ चलती है .
जो अच्छे तो होना ,रहना ,या मरना चाहते हैं पर समाज को उसकी कीमत अदा नहीं करना चाहते , या नहीं कर पाते उन्हें समाज अच्छा न तो कहता है , न सहता है - समाज उनके साथ नहीं रहता.
है तो विडम्बना ,पर है कुछ ऐसा ही .
मानिये ,समझिये तो भी ठीक - न मानिए ,न समझिये तो भी; है तो यही .
वैसे समझ में नहीं आया आज तक - अच्छाई के साथ समाज का ऐसा ब्यवहार क्यों ?
शायद समाज का यही रिवाज है , परखने का ,पहचानने का !
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