अब लगता है ,चाकरी करना एक संस्कार है , चाटुकारिता एक संस्कार है , नौकर हो कर रहना , नौकर ही रह जाना , एक संस्कार है -
यदि यह संस्कार नहीं है तो आप सफल नौकर नहीं हो सकते -
आप यह नहीं कह सकते कि मेरी प्राथमिकता वे ही हैं जो मेरे मालिक की .
यदि यह संस्कार नहीं है तो आप स्वतंत्र हो कर सोचेंगें और आपका यह स्वतंत्र सोच आपको नौकर होने ,रहने के अयोग्य बना देता हैं .
यदि यह संस्कार नहीं है तो आप सफल नौकर नहीं हो सकते -
आप यह नहीं कह सकते कि मेरी प्राथमिकता वे ही हैं जो मेरे मालिक की .
यदि यह संस्कार नहीं है तो आप स्वतंत्र हो कर सोचेंगें और आपका यह स्वतंत्र सोच आपको नौकर होने ,रहने के अयोग्य बना देता हैं .
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