Friday, 16 January 2015

यदि सब कुछ की आखिर एक  सीमा तो है ही न तब बेचते रहने की सीमा क्या है ?
बहुत कुछ बेचा - बिकवाया .कुछ तो बताओ जो बेचा -बिकवाया नहीं जा सकता .
सब कुछ खरीदने का अहंकार ही तुम्हे सब कुछ बेचने के अंधकार में धकेलने के लिये पर्याप्त है .
सभी कुछ का एक प्रेस टैग होता है और मैं खरीददार हूँ , दाम बताओ,यह भ्रम ही इस वास्तविकता का आधार है की तुम अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ बिकने को तैयार हो -केवल तुम्हे दाम देने वाले की प्रतीक्षा है .
सच यह है की सारी दुनिया न तो बाजार है , न बना सकोगे , और दुनिया में सदैव कुछ ऐसा रहेगा जिसे खरीदा बेचा नहीं जा सकता. बहुत से ऐसे हैं जो कभी भी नहीं बिकेंगें . प्रश्न ही नहीं है .

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