Thursday, 12 June 2014

रोटी के टुकड़ों से दीवार खड़ी  कर दी
उन दीवारों के चारों और कांटेदार तार
रोटी के टुकड़ों के लिये मुझे लड़ाते रहे
सड़सठ साल का मैं, आज भी भूखा .

कब ले गये थे मुझे आपरेशन थियेटर में !
आज तक क्या एडमिट बेहोश ही रखा है ?
सड़सठ साल पहले दौड़ धुप जो हुई थी
उसके बाद आज तक यह क्या कर रखा है ?

मेरी रोटी की आड़ में ओटी के सन्नाटे में
थैली टोपी वर्दी की रासलीला अब मैं समझा
मेरे पसीने से बनाते रहे तुम इत्र -फुलेल
खुलते बटन , टूटते नाड़े सब कुछ है उलझा

ओटी की बेबस नर्स की तरह ,तुन मुझसे खेले हो
घास, हसुआ , बकरी , टोकरी ,ये सब गवाह है
इंटरव्यू लेती दीवारें आज भी चीख -बोल रहीं है
बनते मकानों की छाते , इस कदर क्यूँ स्याह है

रसीदे बनती,कटती, फटती रही,इस तरह
नक्से बनाये बहुत गये ,सभी उसी तरह
मुझे रोटी,ओटी  में उलझाया कुछ इस तरह
नाडा  तोडा, नाड़ी तोड़ी,नारी तोड़ी कुछ इस तरह

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