Tuesday, 24 June 2014

सन १९७२ में मैं कलकत्ते से इस छोटे से कस्बे नुमा शहर में आया था,१०० रुपया महिना मिलता था, एक दिन दिन भर नगा बीघा के जुमाई यादव के खेत में रोपनी में सहयोग करने के बाद पूरी तरह कादो मट्टी में सन कर पहली मजदूरी मिली थी अढाई रूपये ,एक महिना कामर्स का त्युसन अहले सुबह पढ़ाने पर एक किलो सत्तू --- उस वक्त रहने को अस्थाई घर भी नहीं था,पढने की बात तो सपना थी
तीस रूपये महीने में मेरी माँ को दाई -बर्तन धोने मांजने के काम का प्रस्ताव मिला था . सौ रूपये ही महिना मेरे पिता जी को मिलना शुरू हुआ था ,वे बीमार रहते थे. बीमार हालत में ही कलकत्ता छोड़ कर आये थे . साधन हीन , आश्रय हीन , अपनों से ही अपमानित .
मेरी एक बहन थी जो बाद में १९८५ में चलती रही . १९७५ के आस पास वह बीमार होना शुरू हुई थी , फिर कभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई .

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