ऐ अप्रतिम मूर्ति ,तुम्हारा अभिनन्दन है कि तुम मेरी छैनियों के आघातों से उकताई नहीं , तुमने बर्दास्त किया और कभी भी तुमने मुझ पर आरोप नहीं लगाये .
सच कहूँ तो तुम जब चाहती मुझ पर कोई भी , कैसा भी आरोप लगा सकती थी ,क्योंकि तुम्हें गढ़ते वक्त मैं ही अकेला रहता था तुम्हारे साथ , वक्त -बेवक्त .
तुम्हारा आभार ,तुमने मुझ पर ,मेरी छैनी पर , मेरे हथौड़े अथवा हथौड़ी पर,तथा छैनी पकड़ने वाली अँगुलियों पर ,तथा हथौड़ी उठाने वाली भुजाओं पर अपने विश्वास को नहीं डिगने दिया , तबभी नहीं जब वे सब उकसा रहे थे.-- Tearful thanks my ------ and all
सच कहूँ तो तुम जब चाहती मुझ पर कोई भी , कैसा भी आरोप लगा सकती थी ,क्योंकि तुम्हें गढ़ते वक्त मैं ही अकेला रहता था तुम्हारे साथ , वक्त -बेवक्त .
तुम्हारा आभार ,तुमने मुझ पर ,मेरी छैनी पर , मेरे हथौड़े अथवा हथौड़ी पर,तथा छैनी पकड़ने वाली अँगुलियों पर ,तथा हथौड़ी उठाने वाली भुजाओं पर अपने विश्वास को नहीं डिगने दिया , तबभी नहीं जब वे सब उकसा रहे थे.-- Tearful thanks my ------ and all
No comments:
Post a Comment