१९७२ में रामकिशन जी के बेटे महादेव की दुकान से ६ रुपुए में बारह चूहों से कटी ग्लोरियस गंजी वह भी उधार - वहाँ से आज तक की यात्रा , एक दिवा स्वप्न की तरह है .
१९६९ से १९७२ के बीच कलकत्ते में श्री सत्यनारायण दीक्षित जी की ट्युशन फीस भी नहीं दे पाना ,आये गये को चाय तक न पिला पाना , महीनों किराये के मकान का किराया नहीं दे पाना , इलाज तक नहीं करा पाना ,
बस का किराया दस पैसे भी बचाने के लिये पैदल चलना, पुराणी किताब की दुकानों पर बेगार कर किताबें पढने के लिये प् लेना - यह सब सदैव याद रहेगा .
उसके बाद भी पढने की धून कैसे जिन्दा रही , समझ के परे है .
१९६९ से १९७२ के बीच कलकत्ते में श्री सत्यनारायण दीक्षित जी की ट्युशन फीस भी नहीं दे पाना ,आये गये को चाय तक न पिला पाना , महीनों किराये के मकान का किराया नहीं दे पाना , इलाज तक नहीं करा पाना ,
बस का किराया दस पैसे भी बचाने के लिये पैदल चलना, पुराणी किताब की दुकानों पर बेगार कर किताबें पढने के लिये प् लेना - यह सब सदैव याद रहेगा .
उसके बाद भी पढने की धून कैसे जिन्दा रही , समझ के परे है .
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