Sunday, 22 June 2014

अख़बार ,पत्रिका , सिनेमा , पत्र-व्यवहार ,इ-मेल ,टीवी , तथा प्रचलित इन्टरनेट -कम्युनिकेसन मीडियम ,एप्लाय्म्सेस आज सभी के लिये ग्राह्य ,आवश्यक  है ,इनसे परहेज करना बेमानी है, अपने विवेक से अपनी सीमा तय करें .
क्या ,कब ,कैसे  पढूंगा ,क्या और कितना ,किसे ,कब लिखूंगा , किसका कितना कब ,क्या और क्यों जबाब दूंगा , कब ,क्या, किसके साथ देखूंगा, किसे क्या दिखाऊंगा, किससे ,लिखवाऊंगा , किससे पढ़वाउंगा  यह सब अब  आपको आपकी  अपनी जिम्मेवारी पर तय करने है और आप को ही अपना किया,कराया, लिखा ,पढ़ा ,लिखवाया ,पढवाया ,देखा ,दिखाया ,भेजा ,भिजवाया ,बस  आपको ही   ही को भोगना होगा ,
अपने विवेक का प्रयोग करें,अपनी अभिव्यक्ति का स्वरूप स्वयं निर्धारित करें .
और हाँ , कुछ अभिव्यक्ति के माध्यम अत्यंत व्यापक हो गये है , सावधान रहें.
एक तरह से कहूँ तो हम सब के लिखे-पढ़े देखे पर सदैव समाज की नजर है .
पदेन जो मर्यादा हो उसका ध्यान रखे.
मेरी समझ में यदि आप शिक्षक की मर्यादा का पालन करते रहें यह सर्वश्रेष्ठ  स्वीकृत मर्यादा है .

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