Wednesday, 25 June 2014

श्री डीडू महेश्वरी स्कुल से १९६७ में जैन विद्यालय में एडमिशन बड़े चाव से ,परिश्रम से करवाया गया क्लास सिक्स में .इसके पहले चार साल डीडू महेश्वरी में पढ़ा . उसके भी पहले दिगम्बर जैन शिक्षालय में. कलकत्ते के मारवाड़ी परिवारोंमें उस वक्त पढाई के लिये कोई खास उत्साह नहीं होता था .पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे ,गद्दी ,दुकान ,दलाली ,बिजनेस ,सप्लाई ,खूब हुआ तो छोटीमोटी कारखाने नुमा इकाई - बस यही सपना होता था .हाँ पढाई का मतलब तब  भी कलकत्ते  में सी ए  बनना था , कमो बेस मारवाड़ी परिवारों में आज भी वही .चार्टर्ड अकाउंटेंट , कास्ट अकाउंटेंट , सी एस ,सी ऍफ़ ए .बस वहीं तक . मारवाड़ी परिवार अभी भी फ़ौज के किसी भी पद के लिये उत्साहित नजर नहीं आते .अब ग्रामीण इलाके के मारवाड़ी परिवार में  डाक्टर ,इंजीनियर बन रहे हैं .ये लोग क्रमशःबड़े शहरों में पहुंच कर आश्चर्यजनक सफलता अर्जित कर रहे हैं ,सेवा के क्षेत्र में ,अनुसन्धान के क्षेत्र में नयी तकनीक के उपयोग के क्षेत्र में .पर अस्पतालों में आपको या तो मारवाड़ी डाक्टर मिलेंगे या  अकाउंटेंट ,कैशियर  और मेनेजर मिल जायेंगे पर पारा मेडिकल स्टाफ नहीं , नर्सिंग स्टाफ नहीं , सिक्युरिटी स्टाफ नहीं . उसी प्रकार उच्च तकनीक संस्थाओं में बड़े पदों पर या बड़े पदों की शुरुआती पायदान पर आपको तीक्ष्ण बुद्धि प्रवीण अध्येता तकनीक ज्ञान से भरेपूरे ,बड़े उत्साही बड़ी बड़ी डीग्री धरी मारवाड़ी नौजवान मिल जायेंगे पर असिस्टेंट ग्रेड पर नहीं मिलते .
मारवाड़ी नौजवान यदि अपनी  बौद्धिक क्षमता सामान्य पाता है तो वह करियर के रूपमे ट्रेड ,इंडस्ट्री ,कामर्स को ही तरजीह देता है .
साहित्य ,खेल ,कला , सामाजिक कार्य का पूर्णकालिक करियर मारवाड़ी परिवारों को आज भी स्वीकार नहीं 
आध्यात्मिक वे हो सकते है पर उसे भी वे करियर के रूप में स्वीकार नहीं करते.
हिंसक प्रतिरक्षा,शारीरिक या अपने सम्मान -गरिमा की रक्षा के लिये आत्मरक्षा  तक के लिये मारवाड़ी को संघर्ष करते नहीं देखिएगा . हाँ भाड़े पर वे सारी सुरक्षा खोजते हैं ,पर अपने हाथों से , अपने भुज बल से , ना बाबा ना . यह तो गुंडा मवाली का काम है ! ऐसा क्यों. समझ में मुझे तो आज तक नहीं आया
एकांगी समाज पूरा समाज नहीं होता . पूर्ण समाज को बहुमुखी होना ही होगा . बहु मुखी नहीं ,सर्व मुखी .समाज में सफाई कर्मचारी से लेकर राजा, मंत्री वैद्य सभी चाहिए.सक्षम मूल जमीनी स्तर पर काम न हो तो समाज पैदा ही नहीं होता . केवल नक्शे से ताजमहल नहीं बना करता .केवल सोने चांदी से चूल्हे न तो जलाये जा सकते हैं ,न रोटियां बनाई जा सकती है . केवल गॉड ,ईश्वर , अल्लाह  , हरी नाम ,काव्य- कविता ,नमाज-बन्दगी -अरदास -पूजा ,से व्यक्ति चल सकता है , सुडौल सुदृढ़ समाज नहीं .
खैर ,कलकत्ते के दिगम्बर जैन विद्यालय की क्लास सिक्स की पहली छमाही परीक्षा में मैं फेल था ,ड्राइंग में जीरो ,जोग्रफी में पांच या सात ,ड्रील में जीरो ,इंग्लिश में फेल ,हिंदी में पास मार्क , और दुसरे सब्जेक्ट में बस पास मार्क के ठीक निचे.बस उठा कर मेरी सीट एकदम पीछे वाली बेंच पर.
बड़ा धक्का लगा था .खाई फाइनल में अपने सेक्सन में थर्ड , फर्स्ट एक नाहटा नाम का विद्यार्थी , दूसरा कोई जैन .पूरी क्लास में भी पोजीसन था ,पर उपर के सारे जैन थे.एक झुनझुनवाला था ,हिंदुस्तान मोटर से आता था , दूसरा एक शिवकुमार अग्रवाल था ,वे लोग स्कूल के टीचर से ट्युसन लेते थे .
बस सातवीं के एडमिशन के बाद से ही डॉ लगने लगा था किमेरी पढाई कभी भी रूक सकती है ,मुझे कभी भी स्कूल से हटाया जा सकता है .वह कलकत्ते में घनघोर अशांति के दिन थे .व्यापर तथा उद्योग से जुड़े लोंगो के साथ संघर्ष तथा राजनीति का दौर था . व्यापारी परिवारों पर हिंसक हमले हो रहे थे . उनकी संपत्तियां ,कल-कारखाने नष्ट किये जा रहे थे .कलकत्ते के शेयर बाजार,जूट बाजार, लोहा बाजार,कपड़ा बाजार  की बुरी हालत थी .
बस यही मेरे अस्तित्व का यक्ष प्रश्न पैदा हुआ जिसकी पीड़ा से मैं कभी उबर नहीं पाया.
येन केन प्रकारेण हायर सेकेंडरी की परीक्षा देने के बद्बिना कुछ सोचे बिचारे मेरे पिता आदि के साथ  मैं उखड़ता हुआ बैग-बैगेज के साथ औरंगाबाद ले आया गया . उस वक्त वह भी मेरे उपर एहसान ही किया गया बताया जाता है.

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