यदि आप से कोई गलती हो ही गई हो तो उसे कम से कम अपनी बाद वाली पीढ़ी के सामने स्वीकारे ,उसे गलत है ,ऐसा समझायें ,समझें । खामखाह अपने पाप को उस तरह से सजा के न दिखाये की नई पीढ़ी पाप को ही स्वभाव या पुण्य या नियति मान बैठे । अपने पाप से नई पीढ़ी को जन्म के साथ ही बोझिल न करे । नई पीढ़ी को अपना पाप बताये औऱ यह भी बताये की इस पाप को नई पीढ़ी को झेलना नहीं चाहिये ।
बस अपने पाप को पाप जान तो लीजिये ,मान तो लीजिये ,आपसे यह या वह पाप हो गया है ,जो हो गया वह पाप था बस इतना स्वीकार करते बताते जाईये ।अपने पाप से खुद को महिमा मंडित न करे ।
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