एक ही कहानी ,एक ही बात, बस वही रात , कहे जा रही वही एक बात जो मैं भूल जाना चाहता था पर वो बात थी कि बिजली सी कड़कती, उमड़ते बादलों की बारात ले चली ही आती थी, बिना बुलाये आती, बिना सत्कार ही ठहर ही जाती, भगाते ही और जम जाती, जमते जमते अब तो अपनी ही हो चली थी। कई बार चाहा, इज्जत, बेइज्जत कीड़ी भी तरह कहीं भी चली जाए। पर बिना कुछ बोले, चले वस बस पड़ी रहती, ढीठ की तरह, जजरी नहीं।
वही एक बात, उस रात की, कहानी सुनाती, पर केवल मुझको।
वही एक बात, उस रात की, कहानी सुनाती, पर केवल मुझको।
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