यह सही है, मैं उतना प्रेक्टिकल नहीं जितना आज के समय में दुनिया में होना चाहिये।
यह भी सही है मैं किताबी आदर्शवादिता का शिकार हुआ हुआ जाता हूँ। यह भी सही है कि मैं अधिक ही भावुक हूँ।मैं शीघ्र आवेशित ही जाता हूँ । मैं अपूर्ण भी हूँ। मेरे में नैतिक कमजोरियाँ भी है। में शतप्रतिशत शुद्धता का न दावा करता हूँ, न कर सकता हूँ, हूँ ही नहीं तो दावे का प्रश्न ही कहाँ।
इसके कारण कई बार उपहास का ,निंदा का पात्र भी होता हूँ।
यह भी सही है कि मुझे शायद आपलोगों से कुछ कम ही परमात्मा ने दिया है।
पर जितना भी परमात्मा ने मुझे दिया है , वह क्या कम है ?
क्या मैं सचमुच उतने लायक भी हूँ, था, रहूँगा?
अकिंचन में। अज्ञात में। अधम में। न कुछ था, न साधन थे, न सहयोग, न प्रेरणा, न यश का कोई श्रोत , न श्रेय की संभावना ।
इन सब के बाद भी भगवान ने इतना कुछ दिया, किया , बहुत बड़ी बात है।
अब इतने पर भी यदि मैं प्रचलित चालू गन्दगी भरा, बेईमानी वाला रास्ता चुनूँ, क्यों। परमात्मा क्या बोलेंगें।
बेवजह, आखिर क्यूँ।
परमात्मा क्या कहेगा ?
अरे, रमेश तूँ भी इन सब की ही तरह निकला !
यह भी सही है मैं किताबी आदर्शवादिता का शिकार हुआ हुआ जाता हूँ। यह भी सही है कि मैं अधिक ही भावुक हूँ।मैं शीघ्र आवेशित ही जाता हूँ । मैं अपूर्ण भी हूँ। मेरे में नैतिक कमजोरियाँ भी है। में शतप्रतिशत शुद्धता का न दावा करता हूँ, न कर सकता हूँ, हूँ ही नहीं तो दावे का प्रश्न ही कहाँ।
इसके कारण कई बार उपहास का ,निंदा का पात्र भी होता हूँ।
यह भी सही है कि मुझे शायद आपलोगों से कुछ कम ही परमात्मा ने दिया है।
पर जितना भी परमात्मा ने मुझे दिया है , वह क्या कम है ?
क्या मैं सचमुच उतने लायक भी हूँ, था, रहूँगा?
अकिंचन में। अज्ञात में। अधम में। न कुछ था, न साधन थे, न सहयोग, न प्रेरणा, न यश का कोई श्रोत , न श्रेय की संभावना ।
इन सब के बाद भी भगवान ने इतना कुछ दिया, किया , बहुत बड़ी बात है।
अब इतने पर भी यदि मैं प्रचलित चालू गन्दगी भरा, बेईमानी वाला रास्ता चुनूँ, क्यों। परमात्मा क्या बोलेंगें।
बेवजह, आखिर क्यूँ।
परमात्मा क्या कहेगा ?
अरे, रमेश तूँ भी इन सब की ही तरह निकला !
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