Saturday, 11 October 2014

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माँ की ममता का सागर ये, मेरी आँखो का तारा है. 
कैसे बतलाउ तुमको , किस लाड प्यार से पाला है
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तुम द्वारे मेरे आए हो, मैं क्या सेवा कर सकता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे, मैं आज समर्पित करता हूँ
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मेरे हृद्य के नील गगन का ये चाँद सितारा है
मैं अब तक जान ना पाया था, इस पर अधिकार तुम्हारा है
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ये आज अमानत लो अपनी, कर बँध निवेदन करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे, मैं आज समर्पित करता हूँ '
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इससे तो भूल होगी, ये सरला है सुकुमारी है .
इसके अपराध माफ़ करना मेरे घर की राजदुलारी है
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मेरी कुटिया की शोभा है,जो तुमको अर्पण करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पित करता हूँ '
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भैया से आज बहन बिछ्ड़ी माँ से बिछ्ड़ी माँ की ममता
बहनो से आज बहन बिछ्ड़ी , लो तुम्ही इसके आज पिता
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मैं आज पिता कहलाने का अधीकर समर्पित करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे आज समर्पित करता हूँ ' '
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था जिस दिन इसका जन्म हुआ ना गीत हुए ना शहनाई,
पर आज विदा के अवसर मेरे घर बजती शहनाई
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ये बात समझकर मैं मन ही मन रोया करता हूँ, 
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे आज समर्पित करता हूँ 

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