जो श्मशान में शरीर के साथ ही पहुंचते हैं और शरीर की पूरी तरह सारी क्रियाएँ हो जाने के बाद श्मशान से लौटते हैं उनके अनुभव अलग होते हैं - दर्शक -महानुभावों के अनुभव से .
और जिसने दस बार इस प्रकार श्मशान दर्शन और क्रिया को साक्षात् शुरू से अंत तक देख लिया ,उसका व्यवहार विचार बदल ही जायेगा .
आदमी अंत में खाली हाथ ही जायेगा .
निश्चित है .
उसके अपने ही उसे खाली हाथ ,हाथों को पीछे मोड़ ,शरीर के निचे दबा ,छाती पर भरी भरी लकड़ियाँ डाल अंततः कपाल क्रिया तक कर डालते हैं.
आपका कोई अवशेष बच नहीं सकता .
सांस रुकी नहीं की बस आपको ठिकाने लगानेका सामूहिक उपक्रम शुरू .
यही एक उपक्रम है जब सारे परिवार के लोग एकमत होते हैं ,और सब मिलकर आपको जैसे आप इस धरती पर आये थे वैसे ही आपको भेज देते हैं .
सारा परिवार कितना निर्मम हो जाता है !
और जिसने दस बार इस प्रकार श्मशान दर्शन और क्रिया को साक्षात् शुरू से अंत तक देख लिया ,उसका व्यवहार विचार बदल ही जायेगा .
आदमी अंत में खाली हाथ ही जायेगा .
निश्चित है .
उसके अपने ही उसे खाली हाथ ,हाथों को पीछे मोड़ ,शरीर के निचे दबा ,छाती पर भरी भरी लकड़ियाँ डाल अंततः कपाल क्रिया तक कर डालते हैं.
आपका कोई अवशेष बच नहीं सकता .
सांस रुकी नहीं की बस आपको ठिकाने लगानेका सामूहिक उपक्रम शुरू .
यही एक उपक्रम है जब सारे परिवार के लोग एकमत होते हैं ,और सब मिलकर आपको जैसे आप इस धरती पर आये थे वैसे ही आपको भेज देते हैं .
सारा परिवार कितना निर्मम हो जाता है !
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