Tuesday, 28 October 2014

पाप को आवरण की आवश्यकता होती है , वह अकेले खड़ा नहीं रह सकता , पाप को भीड़ की जरूरत है , जनमने के लिये , पनपने के लिये और सुरक्षा के लिये।  पाप और पापी बढ़ते ही दीखता है। भीड़ के सहारे पाप और पापी अपने सुरक्षित होने का आभाष खोज ही लेते हैं। परस्पर सुरक्षा देते -लेते ये समूहों , जमातों , गिरोहों का  निर्माण करते रहते है और वहीं  आश्रय पाते रहते हैं। 

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