मैं तो असहमत हूँ कि शहर सिखावे कोतवाली .
गया समय कि सोलह साल का बच्चा भी राजा बन जाये .अंधे को राजा बनने , बनाने का अवसर देने वाला समय भी नहीं रहा .
शहर से अनजान .,शहर वालों से अनजान ,ब्यवस्था से अनजान ,शहर की आकांक्षा -ब्यवस्था से अनजान ,शहर के प्रति अपने दायित्व को न समझ पानेवाला, न समझ सकने की योग्यता रखने वाला कैसे कोतवाल बनाया जा सकता है .शहरवासी कोई प्रयोगशाला तो हें नहीं की टेस्ट करो ,गलतियाँ करो और सीखो .
हम चूहे , बन्दर आदि तो हैं नहीं जिनपर टेस्ट करने का लाईसेंस मिला करता हो .
अनट्रेंड कोतवाल , जज , कलक्टर डाक्टर , सैनिक ,संत्री ,मंत्री -भई मुझे तो बर्दास्त नहीं .
समझ में नहीं आता जिन्हें अपने काम को कभी सिखाया ही नहीं गया , उन्हें वह काम हम ,आप ,और वे क्यों सौंप देते हैं.
बिना जिम्मेवारी के कोई न रहे .
बच्चा अपने माँ -बाप की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी हो ,मुझे कोई आपत्ति नहीं है
लोकपद उत्तरिधाकार में नहीं दिया जा सकता . लाटरी या भाग्यवश भी इन पदों का फैसला नहीं होना चाहिये .
केवल तपे-तपाये प्रशिक्षित प्रमाणित अनुभवी लोगों को ही लोक पदों पर शक्ति दी जनि चाहिए - नौसिखीये को नहीं .